पति की इतने % कमाई पर ही पत्नी का अधिकार, और मां-बाप की संपत्ति पर बेटा बेटी के लिए नए नियम New Rules Marriage And Inheritance

New Rules Marriage And Inheritance: पारिवारिक संबंधों और संपत्ति के मामले हमेशा से जटिल रहे हैं। हाल के वर्षों में, इन मुद्दों पर कई नए कानून और नियम बनाए गए हैं। इन नियमों का उद्देश्य महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित करना है, साथ ही परिवार में सामंजस्य बनाए रखना भी है।

इस लेख में हम पति की कमाई पर पत्नी के अधिकार और माता-पिता की संपत्ति पर बेटे-बेटी के अधिकारों के बारे में विस्तार से जानेंगे। हम यह भी समझेंगे कि इन नए नियमों का क्या महत्व है और इनका पालन कैसे किया जा सकता है।

पति की कमाई पर पत्नी का अधिकार

पति और पत्नी के बीच आर्थिक संबंधों को लेकर कई गलतफहमियां हैं। कुछ लोग मानते हैं कि पत्नी को पति की पूरी कमाई पर अधिकार होता है, जबकि कुछ लोग मानते हैं कि पत्नी का कोई अधिकार नहीं होता। सच्चाई इन दोनों के बीच में है।

पत्नी के अधिकार का कानूनी आधार

भारतीय कानून के अनुसार, पत्नी को पति की कमाई का एक हिस्सा पाने का अधिकार है। यह अधिकार भरण-पोषण के सिद्धांत पर आधारित है। इसका मतलब है कि पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी और बच्चों के लिए उचित जीवन स्तर सुनिश्चित करे।

पत्नी को कितना हिस्सा मिलता है?

कानून में पति की कमाई का कोई निश्चित प्रतिशत नहीं बताया गया है जो पत्नी को मिलना चाहिए। यह राशि कई कारकों पर निर्भर करती है:

  • पति की कुल आय
  • परिवार का जीवन स्तर
  • पत्नी की अपनी आय (यदि कोई हो)
  • बच्चों की संख्या और उनकी जरूरतें
  • अन्य पारिवारिक खर्चे

आमतौर पर, अदालतें पति की कमाई का 20% से 30% तक पत्नी के लिए उचित मानती हैं। हालांकि, यह प्रतिशत हर मामले में अलग हो सकता है।

पत्नी के अधिकार की सीमाएं

यह समझना जरूरी है कि पत्नी को पति की पूरी कमाई पर अधिकार नहीं होता। उसे सिर्फ उतना ही मिलता है जितना परिवार के उचित रहन-सहन के लिए जरूरी है। इसके अलावा:

  • पत्नी पति की कमाई का हिसाब मांग सकती है, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सकती
  • पति अपनी कमाई का कुछ हिस्सा बचत या निवेश के लिए रख सकता है
  • पत्नी को पति की संपत्ति बेचने या गिरवी रखने का अधिकार नहीं होता

तलाक की स्थिति में क्या होता है?

अगर पति-पत्नी का तलाक हो जाता है, तो पत्नी गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है। यह राशि आमतौर पर पति की कमाई का 25% तक हो सकती है। हालांकि, अगर पत्नी की अपनी अच्छी कमाई है, तो यह राशि कम हो सकती है।

माता-पिता की संपत्ति पर बेटे-बेटी के अधिकार

माता-पिता की संपत्ति पर बच्चों के अधिकार एक जटिल मुद्दा है। इस पर कई कानून और नियम हैं जो समय के साथ बदलते रहे हैं। आइए इन नियमों को विस्तार से समझें।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन

2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया गया। इस संशोधन के बाद बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर हक मिल गया। इस कानून के मुख्य बिंदु हैं:

  • बेटियों को कोपार्सनर का दर्जा दिया गया, जो पहले सिर्फ बेटों को मिलता था
  • बेटियां अब जन्म से ही पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार बन जाती हैं
  • यह नियम 9 सितंबर 2005 से पहले जन्मी बेटियों पर भी लागू होता है
  • विवाहित बेटियों को भी यह अधिकार मिलता है
  • पिता के जीवित रहने या न रहने से इस अधिकार पर कोई फर्क नहीं पड़ता

स्वयं अर्जित संपत्ति पर माता-पिता का अधिकार

जहां पैतृक संपत्ति पर बच्चों का अधिकार होता है, वहीं माता-पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति पर उनका पूरा अधिकार होता है। इस संबंध में मुख्य नियम हैं:

  • माता-पिता अपनी स्वयं अर्जित संपत्ति को अपनी इच्छा से किसी को भी दे सकते हैं
  • बच्चे इस संपत्ति पर दावा नहीं कर सकते, चाहे वे बेटे हों या बेटियां
  • माता-पिता चाहें तो अपनी स्वयं अर्जित संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को भी दे सकते हैं
  • यदि माता-पिता बिना वसीयत किए मर जाते हैं, तभी बच्चों को यह संपत्ति मिलेगी

संपत्ति के प्रकार और अधिकार

अलग-अलग प्रकार की संपत्तियों पर बेटे-बेटी के अधिकार अलग-अलग होते हैं। यह समझने के लिए नीचे दी गई तालिका देखें:

संपत्ति का प्रकारबेटे का अधिकारबेटी का अधिकार
पैतृक संपत्तिबराबर हिस्साबराबर हिस्सा (2005 के संशोधन के बाद)
स्वयं अर्जित संपत्तिमाता-पिता की इच्छा पर निर्भरमाता-पिता की इच्छा पर निर्भर
हिंदू अविभाजित परिवार की संपत्तिकोपार्सनर के रूप में अधिकारकोपार्सनर के रूप में अधिकार (2005 के संशोधन के बाद)
दान या वसीयत से मिली संपत्तिदाता/वसीयतकर्ता की शर्तों के अनुसारदाता/वसीयतकर्ता की शर्तों के अनुसार
मृत्युपरांत प्राप्त संपत्तिउत्तराधिकार कानून के अनुसारउत्तराधिकार कानून के अनुसार

बच्चों के अधिकारों की सीमाएं

यह समझना महत्वपूर्ण है कि बच्चों के अधिकार असीमित नहीं हैं। कुछ परिस्थितियों में उनके अधिकार सीमित हो सकते हैं:

  • अगर माता-पिता ने वसीयत में किसी और को संपत्ति दे दी है
  • अगर संपत्ति किसी ट्रस्ट या चैरिटी के नाम कर दी गई है
  • अगर संपत्ति पर कोई कर्ज या कानूनी दावा है
  • अगर बच्चे ने माता-पिता के खिलाफ कोई अपराध किया है

अस्वीकरण (Disclaimer)

यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी के लिए है। हर मामला अलग होता है और उसमें अलग-अलग कानूनी पहलू हो सकते हैं। इसलिए किसी भी कानूनी कार्रवाई से पहले एक योग्य वकील की सलाह लेना जरूरी है। लेख में दी गई जानकारी के आधार पर की गई किसी भी कार्रवाई के लिए लेखक या प्रकाशक जिम्मेदार नहीं होंगे।

कानून समय-समय पर बदलते रहते हैं। इसलिए यह सुनिश्चित करें कि आप नवीनतम कानूनों और नियमों की जानकारी रखें। सरकारी वेबसाइटों या कानूनी विशेषज्ञों से नवीनतम जानकारी प्राप्त करें।

याद रखें, परिवार में प्यार, समझ और सम्मान सबसे महत्वपूर्ण हैं। कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल समझदारी से करें और हमेशा शांतिपूर्ण समाधान की कोशिश करें।

Author

  • Aman Kanojia

    Aman Kanojia has done a Master’s in Mass Media and 6 years of experience writing about government schemes, recruitment, and educational topics.

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